आत्मा या आत्मन् पद भारतीय दर्शन केरऽ महत्त्वपूर्ण प्रत्ययऽ (विचार) में सं॑ एक छेकै। इ उपनिषद केरऽ मूलभूत विषय-वस्तु केरऽ रूप मं॑ आबै छै. जैंजां एकरऽ अभिप्राय व्यक्ति मं॑ अन्तर्निहित वू मूलभूत सत् सं॑ करलऽ गेलऽ छै जे कि शाश्वत तत्त्व छै आरू मृत्यु पश्चात् भी जेकरऽ विनाश नै होय छै.

आत्मा केरऽ निरूपण श्रीमद्भगवदगीता या गीता मं॑ करलऽ गेलऽ छै. आत्मा क॑ शस्त्र सं॑ काटलऽ नै जाब॑ सकै छै, आगिन ओकरा जलाब॑ नै सकै छै, जऽल ओकरा गलाब॑ नै सकै छै.आरू वायु ओकरा सुखाब॑ नै सकै छै. [१] जोन तरह सं॑ मनुष्य पुरानऽ वस्त्रऽ क॑ त्याग करी क॑ नया वस्त्र धारण करै छै, ओहे प्रकार आत्मा पुरानऽ शरीर क॑ त्याग करी नवीन शरीर धारण करै छै .[२]

सन्दर्भ संपादन

  1. श्रीमद्भगवदगीता, अध्याय 2, श्लोक 23
  2. श्रीमद्भगवदगीता, अध्याय 2, श्लोक 22