चंगेज़ ख़ान (मंगोलियाई: Чингис Хаан, चिंगिस खान, सन् 116218 अगस्त, 1227) एगो मंगोल ख़ान (शासक) रहै जे मंगोल साम्राज्य केरऽ विस्तार म एगो अहम भूमिका निभैलकै। वह अपनी संगठन शक्ति, बर्बरता तथा साम्राज्य विस्तार के लिए प्रसिद्ध हुआ। इससे पहले किसी भी यायावर जाति के व्यक्ति ने इतनी विजय यात्रा नहीं की थी।

चंगेज़ खान

प्रारंभिक जीवन संपादन

चंगेज़ खान का जन्म ११६२ के आसपास आधुनिक मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनोन नदी के निकट हुआ था। चंगेज़ खान की दांयी हथेली पर पैदाइशी खूनी धब्बा था।उसके तीन सगे भाई व एक सगी बहन थी और दो सौतेले भाई भी थे।उसका वास्तविक या प्रारंभिक नाम तेमुजिन (या तेमूचिन) था। मंगोल भाषा में तिमुजिन का मतलब लौहकर्मी होता है।उसकी माता का नाम होयलन और पिता का नाम येसूजेई था जो कियात कबीले का मुखिया था। येसूजेई ने विरोधी कबीले की होयलन का अपहरण कर विवाह किया था।लेकिन कुछ दिनों के बाद ही येसूजेई की हत्या कर दी गई। उसके बाद तेमूचिन की माँ ने बालक तेमूजिन तथा उसके सौतले भाईयों बहनों का लालन पालन बहुत कठिनाई से किया। बारह वर्ष की आयु में तिमुजिन की शादी बोरते के साथ कर दी गयी।इसके बाद उसकी पत्नी बोरते का भी विवाह् के बाद ही अपहरण कर लिया था। अपनी पत्नी को छुडाने के लिए उसे लड़ाईया लड़नी पड़ीं थी। इन विकट परिस्थितियों में भी वो दोस्त बनाने में सक्षम रहा। नवयुवक बोघूरचू उसका प्रथम मित्र था और वो आजीवन उसका विश्वस्त मित्र बना रहा। उसका सगा भाई जमूका भी उसका एक विश्वसनीय साथी था। तेमुजिन ने अपने पिता के वृद्ध सगे भाई तुगरिल उर्फ़ ओंग खान के साथ पुराने रिश्तों की पुनर्स्थापना की।

सैनिक जीवन संपादन

जमूका हँलांकि प्रारंभ में उसका मित्र था, बाद में वो शत्रु बन गया। ११८० तथा ११९० के दशकों में वो ओंग ख़ान का मित्र रहा और उसने इस मित्रता का लाभ जमूका जैसे प्रतिद्वंदियों को हराने के लिए किया। जमूका को हराने के बाद उसमें बहुत आत्मविश्वास आ गया और वो अन्य कबीलों के खिलाफ़ युद्ध के लिए निकल पड़ा। इनमें उसके पिता के हत्यारे शक्तिशाली तातार कैराईट और खुद ओंग खान शामिल थे। ओंग ख़ान के विरूद्ध उसने १२०३ में युद्ध छेड़ा। १२०६ इस्वी में तेमुजिन, जमूका और नेमन लोगों को निर्णायक रूप से परास्त करने के बाद स्टेपी क्षेत्र का सबसे प्रभावशाली व्य़क्ति बन गया। उसके इस प्रभुत्व को देखते हुए मंगोल कबीलों के सरदारों की एक सभा (कुरिलताई) में मान्यता मिली और उसे चंगेज़ ख़ान (समुद्री खान) या सार्वभौम शासक की उपाधि देने के साथ महानायक घोषित किया गया।

कुरिलताई से मान्यता मिलने तक वो मंगोलों की एक सुसंगठित सेना तैयार कर चुका था। उसकी पहली इच्छा चीन पर विजय प्राप्त करने की थी। चीन उस समय तीन भागों में विभक्त था - उत्तर पश्चिमी प्रांत में तिब्बती मूल के सी-लिया लोग, जरचेन लोगों का चीन राजवंश जो उस समय आधुनिक बीजिंग के उत्तर वाले क्षेत्र में शासन कर रहे थे तथा शुंग राजवंश जिसके अंतर्गत दक्षिणी चीन आता था। १२०९ में सी लिया लोग परास्त कर दिए गए। १२१३ में चीन की महान दीवीर का अतिक्रमण हो गया और १२१५ में पेकिंग नगर को लूट लिया गया। चिन राजवंश के खिलाफ़ १२३४ तक लड़ाईयाँ चली पर अपने सैन्य अभियान की प्रगति भर को देख चंगेज़ खान अपने अनुचरों की देखरेख में युद्ध को छोड़ वापस मातृभूमि को मंगोलिया लौट गया।

सन् १२१८ में करा खिता की पराजय के बाद मंगोल साम्राज्य अमू दरिया, तुरान और ख्वारज़्म राज्यों तक विस्तृत हो गया। १२१९-१२२१ के बीच कई बड़े राज्यों - ओट्रार, बुखारा, समरकंद, बल्ख़, गुरगंज, मर्व, निशापुर और हेरात - ने मंगोल सेना के सामने समर्पण कर दिया। जिन नगरों ने प्रतिशोध किया उनका विध्वंस कर दिया गया। इस दौरान मंगोलों ने बेपनाह बर्बरता का परिचय दिया और लाखों की संख्या में लोगों का वध कर दिया।

भारत दन्न॑ प्रस्थान संपादन

चंगेज खान ने गजनी और पेशावर पर अधिकार कर लिया तथा ख्वारिज्म वंश के शासक अलाउद्दीन मुहम्मद को कैस्पियन सागर की ओर खदेड़ दिया जहाँ १२२० में उसकी मृत्यु हो गई। उसका उत्तराधिकारी जलालुद्दीन मंगवर्नी हुआ जो मंगोलों के आक्रमण से भयभीत होकर गजनी चला गया। चंगेज़ खान ने उसका पीछा किया और सिन्धु नदी के तट पर उसको हरा दिया। जलालुद्दीन सिंधु नदी को पार कर भारत आ गया जहाँ उसने दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश से सहायता की फरियाद रखी। इल्तुतमिश ने शक्तिशाली चंगेज़ ख़ान के भय से उसको सहयता देने से इंकार कर दिया।

इस समय चेगेज खान ने सिंधु नदी को पार कर उत्तरी भारत और असम के रास्ते मंगोलिया वापस लौटने की सोची। पर असह्य गर्मी, प्राकृतिक आवास की कठिनाईयों तथा उसके शमन निमितज्ञों द्वारा मिले अशुभ संकेतों के कारण वो जलालुद्दीन मंगवर्नी के विरुद्ध एक सैनिक टुकड़ी छोड़ कर वापस आ गया। इस तरह भारत में उसके न आने से तत्काल भारत एक संभावित लूटपाट और वीभत्स उत्पात से बच गया।

अपने जीवन का अधिकांश भाग युद्ध में व्यतीत करने के बाद सन् १२२७ में उसकी मृत्यु हो गई।

बाहरी कड़ी संपादन