सिन्धु घाटी सभ्यता

एक प्राचीन सभ्यता

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सिंधु घाटी सभ्यता अपने शुरुआती काल में, 3250-2750ईसापूर्व

सिंधु घाटी सभ्यता (3300 ईसापूर्व सें १७०० ईसापूर्व तलक)[] विश्व केरऽ प्राचीन नदी घाटी सभ्यता में सें एगो प्रमुख सभ्यता छेकै । सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध केरऽ अनुसार ई सभ्यता कम सें कम ८००० वर्ष पुरानऽ छै । ई हड़प्पा सभ्यता आरू 'सिंधु-सरस्वती सभ्यता' केरऽ नाम सें भी जानलऽ जाय छै। एकरऽ विकास सिंधु आरू घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे होलै ।[] मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी आरू हड़प्पा एकरऽ प्रमुख केन्द्र छेलै । दिसम्बर २०१४ में भिर्दाना क॑ अब तलक के खोजलऽ गेलऽ सबसें प्राचीन नगर मानलऽ गेलऽ छै सिंधु घाटी सभ्यता के । ब्रिटिश काल-म हुई खुदाइ सन्ही कें आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकार सन्ही-क अनुमान छे कि ई बहुत विकसित सभ्यता छेले आरो ई सब सहर काय बार बसलो आरो उजड़लो छे।

धार्मिक जीवन

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शिल्प

हड़प्पा-म औरत सनही कें माटी कीं मुर्ति खुभे मिले छे| मूर्ति-म स्त्री के गर्भो स निकलते एगो पौधा दिखइलो गेलो छे। विद्वान लोक के मत से ई पृथ्वी देवी के प्रतिमा छे आरो हैकर निकट संबंध गाछ के जन्म आरो बोडो होवे से होते। येहे लि पता चले छे कि यहांकरो लोग धरती के उपज के देवी समझे छले औरो हैकर पूजा वेहे रंग करे छेले जिरंग मिस्र के लोग नील नदी की देवी आइसिस् के समझे छेले। प्राचीन मिस्र रंग यहांकरो समाजो मातृ प्रधान छेले कि नय ई कहना मुश्किल छे।

कुछ विद्वान मानते है की हिंदू धर्म द्रविड़ो का मूल धर्म था और शिव द्रविड़ो के देवता थे जिन्हें आर्यों ने अपना लिया। कुछ जैन और बौद्ध विद्वान यह भी मानते है की सिंधु घाटी सभ्यता जैन या बौद्ध धर्म के थे, पर मुख्यधारा के इतिहासकारों ने यह बात नकार दी और इसके अधिक प्रमाण भी नहीं है।

प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया में पुरातत्वविदों को कई मंदिरों के अवशेष मिले है पर सिंंधु घाटी में आज तक कोई मंदिर नहीं मिला, मार्शल आदि कई इतिहासकार मानते है की सिंधु घाटी के लोग अपने घरो में, खेतो में या नदी किनारे पूजा किया करते थे, पर अभी तक केवल बृहत्स्नानागार या विशाल स्नानघर ही एक ऐसा स्मारक है जिसे पूजास्थल माना गया है। जैसे आज हिंदू गंगा में नहाने जाते है वैसे ही सैन्धव लोग यहाँ नहाकर पवित्र हुआ करते थे।

शिल्प आरू तकनीकी ज्ञान

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यद्यपि इस युग के लोग पत्थरों के बहुत सारे औजार तथा उपकरण प्रयोग करते थे पर वे कांसे के निर्माण से भली भांति परिचित थे। तांबे तथा टिन मिलाकर धातुशिल्पी कांस्य का निर्माण करते थे। हालांकि यहां दोनो में से कोई भी खनिज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं था। सूती कपड़े भी बुने जाते थे। लोग नाव भी बनाते थे। मुद्रा निर्माण, मूर्ति का निर्माण के सात बरतन बनाना भी प्रमुख शिल्प था।

प्राचीन मेसोपोटामिया की तरह यहां के लोगों ने भी लेखन कला का आविष्कार किया था। हड़प्पाई लिपि का पहला नमूना 1853 ईस्वी में मिला था और 1923 में पूरी लिपि प्रकाश में आई परन्तु अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है। लिपि का ज्ञान हो जाने के कारण निजी सम्पत्ति का लेखा-जोखा आसान हो गया। व्यापार के लिए उन्हें माप तौल की आवश्यकता हुई और उन्होनें इसका प्रयोग भी किया। बाट के तरह की कई वस्तुएँ मिली हैं। उनसे पता चलता है कि तौल में 16 या उसके आवर्तकों (जैसे - 16, 32, 48, 64, 160, 320, 640, 1280 इत्यादि) का उपयोग होता था। दिलचस्प बात ये है कि आधुनिक काल तक भारत में 1 रुपया 16 आने का होता था। 1 किलो में 4 पाव होते थे और हर पाव में 4 कनवां यानि एक किलो में कुल 16 कनवां।

अवसान

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यह सभ्यता मुख्यतः 2500 ई.पू. से 1800 ई. पू. तक रही। ऐसा आभास होता है कि यह सभ्यता अपने अंतिम चरण में ह्रासोन्मुख थी। इस समय मकानों में पुरानी ईंटों के प्रयोग की जानकारी मिलती है। इसके विनाश के कारणों पर विद्वान सहमत नहीं हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के अवसान के पीछे विभिन्न तर्क दिये जाते हैं जैसे: बर्बर आक्रमण, जलवायु परिवर्तन एवं पारिस्थितिक असंतुलन, बाढ तथा भू-तात्विक परिवर्तन, महामारी, आर्थिक कारण। ऐसा लगता है कि इस सभ्यता के पतन का कोई एक कारण नहीं था बल्कि विभिन्न कारणों के मेल से ऐसा हुआ। जो अलग अलग समय में या एक साथ होने कि सम्भावना है। मोहेन्जो दरो मे नग‍र और जल निकास कि व्यवस्था से महामारी कि सम्भावना कम लगती है। भीषण अग्निकान्ड के भी प्रमाण प्राप्त हुए है। मोहेन्जोदरो के एक कमरे से १४ नर कंकाल मिले है जो आक्रमण, आगजनी, महामारी के संकेत है।

चित्र दीर्घा

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सन्दर्भ

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  1. http://aajtak.intoday.in/education/story/indus-valley-civilization-or-sindhu-valley-culture-general-knowledge-1-769584.html
  2. लुआ त्रुटि मोड्यूल:Citation/CS1/Utilities में पंक्ति 38 पर: bad argument #1 to 'ipairs' (table expected, got nil)।

ई भी देखऽ

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बाहरी कड़ी

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